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ऑफिस का अच्छा और सकारात्मक व्यवहार

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जब हम किसी विभाग में या किसी फील्ड में काम करते हैं तो हमारे कुछ सीनियर्स होते हैं और हमारे इंचार्ज या हमसे ऊपर पद पर बैठा हो वो हम सबके साथ मिलकर एक कार्य को सुनियोजित तरीके से करने और कराने में लगे रहते हैं, सीनियर जूनियर को हर तरह से मोटिवेट करता है गाइड करता है कि हम अपने जूनियर को किसी काम को किस तरीके से समझा सकते हैं कि उसे आसानी से समझ आ जाए।

जब सीनियर्स अपने इस काम को अंजाम देते हैं तो उनके ब्यवहार में थोड़ा सा कड़कपन जरूर हमे कहीं न कहीं देखने को मिलता है पर इसका ये मतलब नही कि उनका अपने जूनियर्स के साथ कोई अपनापन नही है या उनके साथ पर्सनल दुश्मनी है ,वो उस पद पर बैठे हैं अगर वो अपने जूनियर्स को गाइड करके काम नही कराएंगे तो उनके सीनियर्स जो होंगे उनको डाँटेगे तो हर इंसान अपने काम को एक सही समय और एक सुनियोजित समय पर खत्म कर अपने लक्ष्य को पाना चाहता है।

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हम बात करते हैं हमारे अपने सीनियर मिहिर दास और विभु दत्ता स्वाइन सर का जो किसी काम को कितने समय मे करना है और कराना है ये बखूबी उनको पता रहता है, वो अपने काम को कराने के लिए थोड़ी सी सख्ती जरूर रखते हैं पर उनका हमेसा से अपने जूनियर का सपोर्ट रहता है।


मैं लगभग पांच महीने से उन सबके साथ काम कर रहा हूँ अभी तक जो स्वभाव या अपना पन जाना उन दोनों के बारे में काफी अच्छा रहा।

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घर में भी अगर कोई काम अपने सही समय पर न होता तो घर के मालिक या गार्जियन थोड़ा डांटते हैं सुनाते हैं इसका ये मतलब नही होता कि वो हमसे प्यार नही करते या हमसे द्वेष रखते हैं उनका मतलब है कि हम सही समय पर सही कार्य को पूरा करें ।


जैसे ढोल को जब तक एक ताल में नही बजाया जाता तब तक वो मधुर आवाज नही निकाल सकती ठीक उसी तरह अपने सीनियर्स की सलाह और डांट उसी ढोल के थपाक की तरह होती है जिससे जूनियर एक अच्छी दिशा में काम करके आगे बढ़ सकें।

लेखक : अंकुल त्रिपाठी निराला
(प्रयागराज )

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