दीयों की बारात
( Diyon ki barat )
अमावस्या की रात और दियों की बारात।
ऐसा लगता है जैसे उजाला आज दूल्हा बना हो।
ऐसा लगता है बारातियों के आने पर दिए भी झूमकर लहरा रहे हो।
ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो चारों और बारातियों का स्वागत हो रहा हो।
चारों और आतिशबाजी का शोर है।
नाचते गाते बराती दुल्हन की चौखट पर पहुंच गए मगर वह चांद सी दुल्हन कहां है?
आज कहीं दिखाई नहीं दे रही है किसने लूटा उस चांद की चांदनी को।
अमावस्या की रात और दियों की बारात।
झूमते गाते लहराते दीयों की बरात पहुंच चुकी दुल्हन के घरात।
पकवानों से सजी हर गलियां।
दुल्हन की भी नहीं दिख रही कहीं सखियां।
अमावस की रात दीयों की बरात न चांद तारे न जाने किस कोने में बैठी होगी किस ने लूटा होगा। चांद की चांदनी को।
दीयों का उजाला ऐसा लग रहा है मानो दिन की धूप खिलकर हर एक कोने को जगमगा रही हो।
जिस प्रकार सूरज की रोशनी हर एक कोने पर पहुंचती है उसी प्रकार दिया का उजाला भी हर एक कोने के अंधकार को मिटाते जा रहा है।।
लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड